इस वीडियो में देखिये की अर्जुन कुल धर्म और जाती धर्म के विनाश के बारें में क्या बताते है
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१ बयालीसवाँ श्लोक इस प्रकार है ;
दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः ।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ।।४२।।
२ इस श्लोक का भावार्थ है :
इन अवांछित सन्तानो के दुष्कर्मों से सनातन कुल-धर्म और जाति-धर्म नष्ट हो जाते हैं
३ तैंतालीसवा श्लोक इस प्रकार है:
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन ।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ।। ४३ ।।
४ यहाँ अर्जुन यह बताते है :
हे जनार्दन ! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है, ऐसे मनुष्यों को अनिश्चित काल तक नरक में रहना पडता है, ऐसा हम सुनते आए हैं
५ चवालीसवें श्लोक में अर्जुन कहते है:
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् ।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ।। ४४ ।।
६ इसका भावार्थ है :
ओह! कितने आश्चर्य की बात है कि हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गए हैं और राज्य और सुख के लोभ से अपने प्रियजनों को मारने के लिए आतुर हो गए हैं
७ भगवद गीता का यह पहला अध्याय समाप्ति की ओर आ गया है। अगले वीडियो में देखिये की किस प्रकार अर्जुन हताश हो कर अपने धनुष्य का त्याग करता है
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